मेरा नाम राधिका है। मैंने उन फ्रेंड्स के लिए यह आर्टिकल लिखने का फैसला किया, जिन्हे टॉपर होने के बाद भी इस तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है। मैं जानती हूं कि मेरे जैसे बहुत-से लोग होंगे जिन्होंने ऐसी सिचुएशन का सामना किया होगा या कर रहे होंगे। मुझे उम्मीद है मेरी यह स्टोरी या मेरा ये अनुभव उन्हें कुछ राहत दिलाएगा।
सोमवार
ब्रेक के करीब दस दिनों के बाद हमें फाइनली रिजल्ट प्राप्त हुआ, जिसमे मुझे सोशल साइंस में 50 में स 50, हिंदी में 49, इंग्लिश में 48.5, मैथ्स में 47 और साइंस में 46.5 मार्क्स मिले।इस तरह मैंने तीन सब्जेक्ट्स सोशल स्टडीज, हिंदी और इंग्लिश में टॉप किया था।मैं अपने पेरेंट्स को अपना रिजल्ट बताकर बेहद खुश थी।
मैं तो खुश थी, लेकिन मेरे फ्रेंड्स नहीं।
उनमे से मरी एक फ्रेंड ने कहा - 'तो क्या हुआ? हाईएस्ट मार्क्स लाना तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं है...'(यह शायद जलसी थी। वह तो मेरी कोई गलती निकालने के लिए मेरा पेपर भी चेक करना चाह्ती थी।)
मंगलवार
इस तरह हर कोई मुझे छेड़ता कि किताबों को रटकर तो कोई भी हाईएस्ट मार्क्स ला ही सकता है।
मेरे दोस्त कहते - 'बहु्त टॉप कर रही है न इंग्लिश में...., चल इस वर्ड का मीनिंग बता'
यह बात क्लियर थी कि वे जलन की भावना से भरे हुए थे, लेकिन मैंन कोई रिएक्ट न करके वहां स दूसरी जगह जाना ही बेहतर समझा।
बुधवार
मेरे दोस्तों ने मुझे पार्टी में इनवाइट किया और सबसे कहा कि मैं डांस करूंगी। सभी चौंकते हुए बोले - क्या! राधिका डांस करेगी?
तभी उनमें से एक ने कहा - 'ये अच्छा मजाक है... वह डांस कर ही नहीं सकती, वो पक्की पढ़ाकू है और उसके लिए पढ़ाई ही उसकी लाइफ है।'
(यह बहु्त इंसल्टिंग था और इससे मैं बहु्त हर्ट हुई।मुझे बहु्त गुस्सा भी आया, लेकिन मैं शांत रही और मैंने अपने आपसे कहा- इसे मुझे दूसरों को भी बताना चाहिए।)
गुरुवार
जबसे रिजल्ट आया था, मेरे सारे फ्रेंड्स का ऐसा ही रवैया (behavior) रहा। ऐसे में मैंने भी उनकी बातों का जवाब देना शुरू किया तो मुझे रुड कमैंट्स और टोंन्ट्स सुनने को मिले। मुझे उनके व्यव्हार से काफी दुख हुआ।
मैंने उनसे बात करना बंद कर दिया, क्यूंकि मुझे पता था कि वे मेरा मजाक ही उड़ाएंगे और मैंने अपना पूरा ध्यान अपनी स्टडी पर लगाना शुरू कर दिया और खुद को दिलासा दी।
शुक्रवार
आज हर कोई मुझसे मेरे रूटीन और डेली शेड्यूल के बार में पूछ रहा है- तुम कितने घंटे स्टडी
करती हो?
तुम कब-कब ब्रेक लेती हो? रिवीजन कैस करती हो? वगैरह वगैरह
एक लड़के ने कमेंट भी किया - उससे क्यों पूछ रही हो, यदि उसका शेड्यूल फॉलो करेंगे तो न तो
हम खेल ही पाएंगे और न ही एक-दूसरे को मैसेज ही कर सकेंगे।
इस पर मैंने गुस्से में कहा - अगर तुम मरी तरह हाईएस्ट नंबर ला सकते हो तभी मुझसे बात करो वरना चुप रहो।
शनिवार
स्कूल में मेरे साथ होने वाले इस व्यवहार को मैंने अपनी मदर के साथ शेयर किया। उन्होंने मुझे दो बाते कहीं - एक यह कि मेरे फ्रेंड्स मेरी हिम्मत तोड़ देने कि कोशिश कर रहे हैं और दूसरा यह कि यदि इस व्यवहार से मुझे बचना है तो मुझे इस बारे में अपनी टीचर से बात करनी चाहिए।
मैंने इसके बारे में अपनी टीचर से बात की। उन्होंने कहा कि मैं गलत नहीं हूं और मुझे उनके कमैंट्स सीरियसली नहीं लेने चाहिए। अगर कोई इस तरह की बाते या कमेंट करे तो तुम्हे उसका जवाब देना चाहिए।
रविवार
फायनली, लंबे समय के बाद मैं 'रिलैक्स' हुई। शांति से बैठने लगी और अपनी योग्यता पर गर्व करने लगी। अब मुझ पर लोगों के कमैंट्स का असर नहीं होता था। अब मैं उन्हें इग्नोर करने लगी और उन्हें अपनी लाइफ से मैंने दूर कर दिया।
मैं अपना करियर बनाना चाह्ती थी और अच्छे मार्क्स लाना चाह्ती थी। मैंने ठान लिया था कि लोगों के कमैंट्स मरी सफलता (Success) में बाधक नहीं बनें।